Thursday, December 5आदिवासी आवाज़

आदिवासी साहित्य

आदिवासी समाज में नवाचार: विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक पहल

आदिवासी समाज में नवाचार: विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक पहल

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- Purnendu Pushpesh भारत विविधता और सांस्कृतिक धरोहरों का देश है, जिसमें आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण स्थान है। आदिवासी समाज अपने विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन शैली के लिए जाना जाता है। आधुनिकता की लहर और विकास की दौड़ में आदिवासी समाज भी नवाचार के माध्यम से अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत है। यह लेख आदिवासी समाज में नवाचार की महत्ता, इसकी आवश्यकता, चुनौतियाँ और इसके द्वारा प्राप्त किए गए लाभों पर प्रकाश डालता है। आदिवासी समाज और नवाचार की आवश्यकता आदिवासी समाज पारंपरिक रूप से प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन यापन करता आया है। हालांकि, बदलते समय और बाहरी प्रभावों के कारण, उन्हें भी आधुनिकता की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नवाचार, यानि नए विचारों, तकनीकों और पद्धतियों का उपयोग, आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है जिससे वे अपनी समस्याओं का सम...
राजेश की खोरठा कविता – ‘देसी सिकच्छा: अंगरेजी’

राजेश की खोरठा कविता – ‘देसी सिकच्छा: अंगरेजी’

आदिवासी साहित्य
वर्ष 1999 में "आवाज" 2001 में प्रभात खबर रांची और बिहार ऑब्जर्वर धनबाद में प्रकाशित देसी सिकच्छा: अंगरेजी' (एक व्यंग कविता) अंगरेज जाइ चुकल हइ मेंतुक, अंगरेजी पढ़ाइ गेलक रटाइ रटाइ के हमरा मातरीभासा छोड़ाइ गेलक। 'जुग बदलेक फेरें हाम आइज होस भुलाइ रहल हों सिसु मंदिरेक जघइएं रोज "पब्लिक स्कूल" खोइल रहल हों। असतर भले हेंठ होवे मेंतुक नाँव - हेवेन, पब्लिक, गार्डेन, सेन्चुरी, लेंकें काज टिचर से कि देवेक ओकर मजूरी ? तिआइग के आस वेतन के आवे टीचर करेले काम पढवे हइ त- गीदर- बु"तरुक 'सिटी' मानें बाजा, रैट माने दाम । रफ्तार जदि एहे रहले, त. देस तरक्की' क़र जेते सिकच्छा जगतें भारत नॉव पहिल पांति गिनाइ जेते।।...
राजेश की खोरठा कविता – ‘हाम के हों ?’

राजेश की खोरठा कविता – ‘हाम के हों ?’

आदिवासी साहित्य
वर्ष 2001 में "आवाज" धनबाद एवं "बिहार ऑब्जर्वर" धनबाद में प्रकाशित कविता "हाम के हों ?" हाम के हों ? कहाँ से आइल हो ? काहे आइल हौं ? हामर मनेक भीतरीया केवाइर जखन खुइल जाहे आर, हाम सोंचें लागों हों, तखन, हामर मनें एक हुल उठे हे कि हाम के हों ? कहाँ से आइल हों ? काहे आइलू हो ? के भेजल हे ? काहे भेजल है ? सवालें - सवाल उठल परें हाम ओरझराइ जा हों। कोइ आइकें नाञ् बतवे हामर मनेक उठल सवालेक जवाब तखन, हामर मने एक विचार आवे हे, कि -? हाम चुनाइल हों, परकीरतिक आस पुरबेक लेल कि आर कुछ लेल ? सोचें हों, मेंतुक- सोझरावेक घुँरोटे, ओरझराई जाहों। जदि कोई कहे - तोंञ् पाइन के एक बूंद हें - समुदरेक हंसी. ढेढा करिहें - ढेव नियर बोलीं मिसरी घोइरकें लोकेक पियास मेंटाइहें जीनगीक दान दइके बढिहें आगु। मेंतुक कोउ - कहे 'बतवे-ओला हवे तब ना ? बस ! आर सहन नाञ् हवे । केउ आइकें समझावे, नाञ् त - हाम एहे पूछते रहबइ कि ...
राजेश की खोरठा कविता – नारी

राजेश की खोरठा कविता – नारी

आदिवासी साहित्य
आकाशवाणी हजारीबाग से प्रसारित (25 अगस्त 1998)   "नारी" "आँचल में है दूध आंखों में पानी"पढ़ल हों-तोर तियाग, सेवा आर बलिदानेक निसानीनारी तोर एहे कहानी। तो ममताक मूरती हेंमानुसेक हें तोय माँइमेंतुक तोर सेवा नाय करे परानीनारी तोर एहे कहोनी । कोनो दिन तो माँइ बनइकेंगीदर -बुतरुक गीत सुनवाईकोनो दिन संगिनी बइनकें.मरद के तोंय मन जुड़वलेतोंय मानुसेक भुख मेंटवईसहइकें आपन गोटे हानिकि नारी तोर एहे कहानी ? ममता तोरा में भर जाहे जबबरिसावेइं घर मे अमरित तबू ।सनेह आर "आदर्श" बाहाइकेंघर के बनव हैं सरग तब | तोर बिन जीनगी बेकार भइ जाहेतोर बिन उन्नति अथुरा रइह जाहेडहर देखउआ बइनके तोय डहर देखवईकरे जखन लोक मनमानी।कभूं कभूं तोंय बहिन बइनकेंहाथें राखी पहिरावेईसइ राखिक लजेक कतनादहेज लोभी कुकुर सेंबचवे पारे है परनी ?दइ-देहें आपन कुरबानी ? सोंच नारी सोंच, अभूं तनी सोंचबनवाई एक लोतन कहानीआपन जाइतेक अमर निसानी। नारी तोर...
राजेश कुमार के खोरठा ‘मुक्तक’

राजेश कुमार के खोरठा ‘मुक्तक’

आदिवासी साहित्य
ब्रह्मास्त्र एक रथेक दुइ चक्का जखन टुइट जाहे चक्का चलइ - मेंतूक रथ नाजू चलइ । एका "शक्ति" हइ मेंतुक "फूट" हइ "बिखराव" जइ लाख जतन करलों नाइ बने पारे हइ "ब्रह्मास्त्र" ************************************** "चाइर दिन" ई चाइर दिनकइ जिनगी कइ हाम तअ नाइ कुछ बुझे हों। करे हों वहे कि जेकरा हाम भीतर सइ सही समझें हों ।।
राजेश की खोरठा कविता -‘परिवार नियोजन

राजेश की खोरठा कविता -‘परिवार नियोजन

Breaking News, आदिवासी साहित्य
आकाशवाणी हजारीबाग से प्रसारित (25 अगस्त 1998) 'परिवार नियोजन" आवाज हमर तोहिन तक हई एकरा तोहिन के पसारे होतो । खुसिक झोरी हइ परिवार नियोजन, एकरा सभेक अपनावे होतो || तोइरकें अंधविसवासेंक बेड़ी समाजेक, आगुं आवे होतो । राखल हो आँगुं तोहिन के खुसी हर- हालें एकऍ अपनावे होतो ।। मानलों कि दुनिआइ बनवल हे केकरे मेंतुक सरग एकरा, निज करमें बनबे होतो गीदर- बुतरू बने सुरुज आर चंदा, त- परिवार नियोजन अपनावे होतो ।। बढ़ल जितो छउवा-पुताक जनसंख्या, मानलों सौ बेटाक बाप तोहें कहइभे। मेंतुक डोड़ाइ - मोरतो जखन भूखें ई-महंगी, तखन किं तोहें ओकरा बँचवे पारभे? सच पूछा त मानो हामर बात दुइए बुतरु बेस हो तोहर लेल। देखे पारभे रइखा आपन घरें, माइ, मांटी आर देसेक खेल || आवा मिलमिस संकल्प लों - हामिन परिवार नियोजन अपनइबइ। खुसहाल रहे चाइरो और - अइसने माहोल बनइबई। हामिन परिवार नियोजन अपनइबइ। हामिन परिवार नियोजन अपनइबइ।...