Thursday, December 5आदिवासी आवाज़

विचार

आदिवासी समाज में नवाचार: विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक पहल

आदिवासी समाज में नवाचार: विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक पहल

आदिवासी, आदिवासी संस्कार, आदिवासी साहित्य, झारखण्ड, बोकारो, विचार
- Purnendu Pushpesh भारत विविधता और सांस्कृतिक धरोहरों का देश है, जिसमें आदिवासी समाज का महत्वपूर्ण स्थान है। आदिवासी समाज अपने विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन शैली के लिए जाना जाता है। आधुनिकता की लहर और विकास की दौड़ में आदिवासी समाज भी नवाचार के माध्यम से अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत है। यह लेख आदिवासी समाज में नवाचार की महत्ता, इसकी आवश्यकता, चुनौतियाँ और इसके द्वारा प्राप्त किए गए लाभों पर प्रकाश डालता है। आदिवासी समाज और नवाचार की आवश्यकता आदिवासी समाज पारंपरिक रूप से प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन यापन करता आया है। हालांकि, बदलते समय और बाहरी प्रभावों के कारण, उन्हें भी आधुनिकता की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नवाचार, यानि नए विचारों, तकनीकों और पद्धतियों का उपयोग, आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है जिससे वे अपनी समस्याओं का सम...
परिवार रूपी मंदिर के देवता हैं घर के बुजुर्ग : रामनाथ बैठा

परिवार रूपी मंदिर के देवता हैं घर के बुजुर्ग : रामनाथ बैठा

झारखण्ड, विचार
बोकारो ः सरस्वती शिशु विद्या मंदिर 9/डी बोकारो में दादा-दादी नाना-नानी सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं विद्यालय प्रबंधकारिणी समिति के संरक्षक रामनाथ बैठा ने कहा कि हमारी संस्कृति में 33 कोटि देवी-देवताओं के बीच माता-पिता, गुरु के साथ-साथ घर के बुजुर्गों को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है। उनके प्रति आदर भाव जगाकर हम अपनी सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं। परिवार के बुजुर्ग उस वृक्ष के समान हैं, जिसकी शीतल छाया में छोटों को स्नेह मिलता है और परिवार रूपी मंदिर के इन देवता के आशीर्वाद से उन्नत परिवार सुखमय जीवन व्यतीत करता है। पाश्चात्य सभ्यता के परिवेश में यह विलुप्ति के कगार पर है। अपनी संस्कृति को पुनः स्थापित करने के लिए इस प्रकार का कार्यक्रम विद्यालय में होना अति आवश्यक है। इससे एक संतान का अपने बड़ों के प्रति और बड़ों का अपनी संतान के प्रति...
आदिवासी समाज को सीखना होगा ‘आदिवासियत’ और ‘आधुनिकता’ में संतुलन बनाना

आदिवासी समाज को सीखना होगा ‘आदिवासियत’ और ‘आधुनिकता’ में संतुलन बनाना

Breaking News, आदिवासी, आदिवासी संस्कार, विचार
अनेक मंच और विश्व पटल पर जब भी किसी आदिवासी समाज की बात होती है तो अमूमन एक जंगल में निवास करने वाला और विचित्र वेशभूषा के साथ अपने त्वचा को रंगा एक छवि प्रस्तुत की जाती है। 21 वीं शताब्दी में भी विशाल जनमानस आदिवासी को जंगली ही मानते हैं। परिवर्तन एक अटूट सत्य है और जब सभी समाजों में परिवर्तन हुआ है, तो आदिवासी समाज में भी परिवर्तन क्यों नहीं होना चाहिए? लोग अचंभित होते हैं जब एक आदिवासी ‘वृहद् समाज’ का अंग बनता है। आदिवासी समाज में भी परिवर्तन हुआ है, किंतु वह धीमी गति से हुआ है। इसका एक ठोस वैज्ञानिक कारण है। पुरातत्व मानवशास्त्र में एक विख्यात सिद्धांत है। पुरातन काल में मनुष्य की आवश्यकताएँ सीधे प्रकृति से पूरी होती थी। मनुष्य आवश्यकता अनुरूप प्रकृति से संसाधन प्राप्त करता था। धीरे धीरे यह आवश्यकता पूंजीवाद में बदला और फिर प्रकृति का दोहन अनियंत्रित हो गया। औद्योगिक क्रांति के बाद ...
आरक्षण की आगः राजनीति का आत्म समर्पण….?

आरक्षण की आगः राजनीति का आत्म समर्पण….?

राजनीति, विचार
आज देश के बुजुर्गों की सबसे बड़ी चिंता देश की दिशा को लेकर है, वे समझ नहीं पा रहे है कि आज देश के कथित ‘‘भाग्य विधाता’’ (राजनेता) देश को किस दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे है? सच कहूं तो आज की राजनीति से ‘देशप्रेम’ व ‘जनसेवा’ जैसे भावना का लोप ही हो गया और आज की राजनीति ‘स्वार्थ’ और ‘व्यक्ति निष्ठा’ की पर्याय बन गई है, अब राजनीति का सीधा मतलब ‘सत्ता’ से हो गया है, साथ ही आज की राजनीति का मुख्य ध्येय भी। आज के राजनेताओं को न देशहित से अब कोई दूर का सम्बंध रहा और न ही देशवासियों से? हाँँ, पांच वर्षों में एक बार अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धी के लिए जनता के पास जाना पड़ता है और वे अपनी स्वार्थ सिद्धी के बाद शिखर तक पहुंचाने वाली सीढ़ियों को तोड़कर फैंक देते है, किंतु हाँँ, वे शिखर तक पहुंचाने वाली नई-नई सीढ़ियों की तलाश अवश्य जारी रखते है, जिससे वे शिखर पर बने रह सकें? फिर वे सीढ़ियाँँ चाहे कितनी ...
आदिवासी पत्रकार व आदिवासी पत्रकारिता की आवश्यकता

आदिवासी पत्रकार व आदिवासी पत्रकारिता की आवश्यकता

आदिवासी, विचार
Article by Purnendu Pushpesh आदिवासी पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जो आदिवासी समुदायों की आवाज़ को सुनने और समझने में मदद करता है, और उनकी समस्याओं और उनके साथ हो रही घातक प्रभावों की चर्चा करता है। यहां आदिवासी पत्रकारिता के मुख्य उद्देश्य और आवश्यकताओं की कुछ मुख्य बातें हैं: सत्यता और जानकारी का प्रसारण: आदिवासी पत्रकारों का प्रमुख कार्य असली और सत्यपूर्ण जानकारी को पहुँचाना है, ताकि आदिवासी समुदायों के लोग अपनी समस्याओं को सही समय पर समझ सकें और उनके लिए सही समाधान ढूंढ सकें। समुदाय के अधिकार की सुरक्षा: आदिवासी पत्रकारों का उद्देश्य अपने समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा करना और उन्हें उनके विरुद्ध हो रही उलझनों से समर्थन प्रदान करना होता है। भ्रष्टाचार और अन्य दुर्भावनाओं का पर्दाफाश: पत्रकारिता के माध्यम से आदिवासी समुदायों के बीच में हो रहे भ्रष्टाचार और अन्य दुर्भावनाओं का प...
झारखंड में आदिवासियों के साथ राजनीति

झारखंड में आदिवासियों के साथ राजनीति

आदिवासी, झारखण्ड, विचार
Article by Purnendu Pushpesh झारखंड में राजनीति और आदिवासी समुदायों के बीच संबंध जटिल हैं और पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुए हैं। झारखंड में एक महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी है, और उनकी राजनीतिक भागीदारी और मुद्दे राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बहुत महत्वपूर्ण हैं। झारखंड में आदिवासी समुदायों से जुड़ी राजनीति के संबंध में कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं: जनजातीय प्रतिनिधित्व: झारखंड में जनजातीय समुदायों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण प्रणाली लागू है। राज्य विधान सभा और संसद में कुछ प्रतिशत सीटें अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। इससे आदिवासी नेताओं और प्रतिनिधियों को राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका मिला है। आदिवासी राजनीतिक दल: झारखंड में कई राजनीतिक दल हैं जो मुख्य रूप से आदिवासी मुद्दों पर केंद्रित हैं और आदिवासी नेता सबसे आ...
झारखंड में जनजातियाँ, आदिवासियों की समस्याएँ और उनका समाधान

झारखंड में जनजातियाँ, आदिवासियों की समस्याएँ और उनका समाधान

आदिवासी, झारखण्ड, विचार
Article by Purnendu Pushpesh भारत के कई अन्य हिस्सों की तरह झारखंड में भी जनजातीय समुदायों को कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनकी समस्याओं को समझना और उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों का सम्मान करते हुए समाधान की दिशा में काम करना महत्वपूर्ण है। झारखंड में जनजातीय समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले कुछ प्रमुख मुद्दे और संभावित समाधानों में शामिल हैं: भूमि अधिकार एवं विस्थापन: समस्या: औद्योगीकरण, खनन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कारण जनजातीय समुदायों को अक्सर भूमि हस्तांतरण का सामना करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप विस्थापन और आजीविका का नुकसान होता है।उपाय: जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों को लागू करना और मजबूत करना, जनजातीय भूमि पर किसी भी विकास परियोजना से पहले स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति सुनिश्चित करना और उचित म...
विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास

विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास

आदिवासी संस्कार, विचार
Article by Dr. Abhay Sagar Minz पूरे विश्व में लगभग 37 करोड़ आदिवासी हैं। 13 सितम्बर 2007 को विश्व भर के आदिवासियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन था। इसी दिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने, आदिवासियों के अधिकार का संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र (यूएनड्रिप) को अंगीकृत किया था। घोषणा पत्र के शुरुआत में ही कहा गया है कि आदिवासी समुदाय को अन्य समुदायों की भाँति ही बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए। आदिवासी समाज में विविधता है और वे एक विशिष्ट भाषा एवं संस्कृति को मानने वाले समाज हैं। इस विविधता का सम्मान होना चाहिए। आदिवासी समुदाय को उनकी विशिष्ट संस्कृति और जीवन शैली के आधार पर कोई भी राष्ट्र उनसे भेदभाव नहीं कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस तथ्य पर भी चिंता जतायी कि बाहरी समुदाय के द्वारा आदिवासी समुदाय के जल जंगल और ज़मीन के दोहन का एक ऐतिहासिक क्रम रहा है और फलस्वरूप आदिवासी समुदाय ने निरंतर दर्द...