Sunday, December 22आदिवासी आवाज़

‘ऊपर तक पैसा देना पड़ता है’: ठेकेदारों की सफाई या लूट का नया तरीका?

NAGADA : The Adiwasi Media

बोकारो : बोकारो के शराब ठेकों पर ग्राहकों से प्रिंट रेट से अधिक पैसे वसूलने की समस्या थमने का नाम नहीं ले रही है। ब्रांड और बोतल के साइज के आधार पर यह ओवर रेटिंग बढ़ती जाती है। कई ग्राहकों ने शिकायत की है कि ठेकेदार खुलेआम स्वीकार करते हैं कि उन्हें आबकारी विभाग और पुलिस को हिस्सा देना पड़ता है, जिसके लिए यह अतिरिक्त वसूली जरूरी है।

इस गड़बड़ी का असर केवल चंदनकियारी या चास जैसे ख़ास किसी इलाके तक सीमित नहीं है। बोकारो के सेक्टर इलाकों से लेकर ग्रामीण प्रखंडों तक सभी जगह यह स्थिति समान है। हमारी टीम ने जिले के कई शराब काउंटरों पर जमीनी सच्चाई की जांच की, लेकिन ठेकेदारों ने मीडिया के सामने भी बढ़ाई गई कीमतों में मामूली छूट देने की पेशकश की। ठेकेदारों का कहना था कि “ऊपर तक पैसा पहुंचाने के लिए ग्राहकों से वसूली करना जरूरी है।”

प्राइस चार्ट का अभाव बढ़ा रहा समस्या :

शराब ठेकों पर ग्राहकों को सही कीमत का अंदाजा लगाने का मौका ही नहीं मिलता क्योंकि अधिकतर दुकानों के बाहर प्राइस चार्ट नहीं लगाए गए हैं। यह जानबूझकर किया गया लगता है ताकि ग्राहक प्रिंट रेट जान न सकें और ठेकेदार अपनी मनमानी कीमत वसूलते रहें।

आबकारी विभाग पर उठ रहे सवाल : 

आबकारी विभाग इस गंभीर समस्या पर चुप्पी साधे हुए है। यह विभाग या तो इस भ्रष्टाचार का हिस्सा है, या फिर कार्रवाई करने में अक्षम है। यदि विभाग वास्तव में ईमानदार होता, तो ओवर रेटिंग की यह समस्या इतनी व्यापक नहीं होती।

ग्राहकों का शोषण : 

इस भ्रष्ट व्यवस्था का सबसे बड़ा खामियाजा झारखंड के शराब उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। प्रिंट रेट पर शराब खरीदने के लिए उन्हें दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ सकता है।

भ्रष्टाचार की जड़ें ऊपर तक फैलीं : 

सवाल उठता है कि अपने रोजगार के लिए शराब ठेका लेने वाले कई बेरोजगार युवा रहे हैं तो कई माफिया भी। और कोई भी बजनेस कमाई के लिए किया जाता है। और अगर नाज़ायज कमाई का धंधा चल रहा है तो उसका कारण सोर्स का भ्रष्टाचार ही होता है। ऊपर से १०० / -रुपये का डिमांड होगा तो अंतिम सिरा ग्राहक से २०० / – रुपये वसूलेगा। झारखण्ड के शराब बिजनेस सरकार चलाती है। राजस्व के रुपये तो ख़ज़ाने में चले जाते हैं। फिर इस भ्रष्टाचारी तंत्र के हिस्से क्या आएगा ?

यह मान जा सकता है कि कुछ प्रतिशत काउंटर पर एक्स्ट्रा बेईमान लोग बैठे हों ; किन्तु अगर ऊपर पैसा नहीं पहुंचाना पड़े तो नीचे के लोग इतनी दबंगता से शराब ग्राहकों से पैसे कैसे वसूल लेते हैं ? और अगर ये इस तरह ‘ओवर रेट’ वसूल रहे हैं तो आबकारी विभाग हाथ पर हाथ धर कर बैठ क्यों है ? ज़ाहिर है मिलीभगत है या ऊपर से ही इन काउंटर्स के मालिकों पर कोई तलवार लटक रही है। कारण जो भी हो , पीड़ित तो झारखण्ड राज्य के शराबखोर ही हो रहे हैं। सवाल फिर उठता है कि शराब के ये झारखंडी ग्राहक प्रिंट रेट पर शराब खरीदने किस राज्य में जाएँ ?

इस समस्या का समाधान केवल प्रशासनिक सख्ती और पारदर्शिता से संभव है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी शराब ठेकों पर प्राइस चार्ट लगाए जाएं और ओवर रेटिंग पर रोक लगे। यदि इस भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई गई, तो राज्य के शराब ग्राहक इसी तरह शोषण का शिकार होते रहेंगे।